अनुशासन संहिता
View of Meditation Hall
साधना विधि
विपश्यना भारत की एक अत्यंत पुरातन साधना-विधि है | लगभग २५०० वर्ष पूर्व भगवान गौतम बुद्ध ने विलुप्त हुई इस पद्धति का पुनः अनुसंधान कर इसे सर्वसुलभ बनाया था | यह अन्तमर्न की गहराइयो तक जाकर आत्म-निरिक्षण द्वारा आत्मशुद्धि करने की साधना है | अपने नैसगिर्क सांस के निरिक्षण से आरंभ करके शरीर और चित्तधारा पर पल-पल होने वाली परिवर्तनशील घटनाओ को तटस्थभाव से निरिक्षण करते हुए चित्त-विशोधन और सद्रुण-वर्धन का यह अभ्यास, साधक को कही किसी संप्रदायिक आलंबन को बँधने नही देता | इसीलिए यह साधना सर्वग्राहय है, बिना किसी भेदभाव के सब के लिए समान रूप से कल्याणकारिणी है |
विपश्यना साधना का उद्द्देश यह है कि साधक पारस्परिक द्वेष और द्रोह के दुर्गुणों से छुटकारा पा सके, साम्प्रदायिक्ता एवं संकीर्ण जातीयता के विषैले अहंभाव के बंधनों से उन्मुक्त हो सके, एक स्वस्थ-सुखी समाज का स्वस्थ-सुखी सदस्य बन सके, आत्ममंगल तथा सर्वमंगल की भावनाओ से परिपूर्ण विधेयात्मक और स्रजनातमक जीवन जी कर अपना जीवन सुधार सके |
विपश्यना राग, द्वेष और मोह से विकृत हुए चित्त को निर्मल बनाने की साधना है | दैनिक जीवन के तनाव-खिचाओ से गाँठ- गाँठीले हुए चित्त को ग्रंथि-विमुक्त करने का सक्रिय अभ्यास है |
विपश्यना आध्यात्म की उंची साधना है | परन्तु शरीर के अनेक रोग मन पर आधारित होने के कारण चित्त-शुद्धि के उपफल-स्वरूप ठीक हो ही जाते है | पर साधक कहीं इन रोगों के उपचार को ही मुख्य उद्देश्य बनाकर शिविर मे न शामिल हो | लक्ष्य आध्यात्मिक ही होना चाहिए |
स्वानुशासन
विपश्यना सीखने के लिए 11 दिन की अवधि वास्तव मे बहुत कम है | एकांत अभ्यास की निरंतरता बनाए रखना नितांत आवश्यक है | इसी बात को ध्यान मे रखकर यह नियमावली और समय-सारणी बनाई गयी है | इसके पीछे अनेक साधको के अनुभवों का वैज्ञानिक आधार है |
विशेष ध्यान देने की बात यह है कि शिविरार्थी को पूरे ११ दीनो तक शिविर-स्थल पेर ही रहना होगा | बीच मे शिविर छोड़कर नही जा सकेंगे | इस अनुशासन-संहिता के अन्य सभी नियमो को भी ध्यानपूर्वक पढ़े | यदि इसका पालन निष्ठा और गंभीरतापूर्वक कर सकते हों तभी शिविर मे प्रवेश पाने के लिए आवदेन करे |
शील-पालन
शिविर के दौरान निम्न शीलों का पालन अनिवार्य है:-
- जीव-हत्या से विरत रहेंगे,
- चोरी से विरत रहेंगे,
- अब्रह्मचर्य (मैथुन) से विरत रहेंगे,
- असत्य-भाषण से विरत रहेंगे,
- नशे के सेवन से विरत रहेंगे,
- श्रांगार-प्रसाधन एवं मनोरंजन से विरत रहेंगे,
- उँची आरामदेह विलासी शय्या के प्रयोग से विरत रहेंगे,
- पुराने साधक - दोपहर-बाद (विकाल) भोजन से विरत रहेंगे | वे सायँ 5 बजे केवल नींबू की शिकंजी लेंगे, जबकि नए साधक दूध/चाय, फल ले सकेंगे | रोग आदि की विशिष्ठ अवस्था मे पुराने साधको को फलाहार की छूट आचार्य की अनुमति से ही दी जा सकेगी |
Rare & 500 years Old tree adjacent to Dhamma Kalyana
समपर्ण
साधना-शिविर की अवधि में साधक को अपने आचार्य के प्रति, विपश्यना-विधि के प्रति तथा समग्र अनुशासन-संहिता एवं समय सारणी के प्रति पूर्णतया समर्पण करना होगा | समर्पित भाव होने पर ही निष्ठापूर्वक काम हो पायेगा और सविवेक श्रद्धा का भाव जागेगा जो कि साधक की अपनी सुरक्षा और मार्गदर्शन हेतु नितांत आवश्यक है |
आर्य-मौन
शिविर आरंभ होने से लेकर दसवें दिन सुबह दस बजे तक साधक अर्यमौन अर्थात वचन व शरीर से भी मौन का पालन करेंगे | शारीरिक संकेतो से या लिख-पढ़कर विचार विनिमय करना भी वर्जित है | अत्यंत आवश्यक हो तो व्यवस्थापक से तथा विधि को समझने के लिए आचार्य से बोलने की छूट है | परन्तु ऐसे समय मे कम से कम, जितना आवश्यक हो उतना ही बोलें | विपश्यना साधना व्यक्तिगत अभ्यास है| अतः हर साधक अपने आप को अकेला समझता हुआ एकांत साधना मे ही रत रहें |
वेश-भूषा
शरीर व वस्त्रों की स्वच्छता वेश-भूषा में सादगी एवं शिष्टाचार आवशयक है | झीने कपड़े पहनना निषिद्ध है | महिलाए कुर्ते के साथ दुपट्टे का उपयोग अवश्य करें |
केन्द्र पर क्रय-विक्रेय की असुविधा रहती है |
अतः अपने दैनिक उपयोग की वस्तुए तेल, साबुन, मंजन ब्रश आदि तथा ओढ़ने-बिछाने की चादरें/कम्बल साथ लाएं | विद्यापीठ में गद्दे, आसान उपलब्ध है |
पुरुषों और महिलाओं का प्रथक-प्रथक रहना
आवास, अभ्यास, अवकाश और भोजन आदि के समय सभी पुरुषों और महिलाओ को अनिवार्यतः पृथक-पृथक रहना होगा |
वाहय-संपर्क
शिविर के पूरे काल मे साधक अपने सारे बाहय-संपर्क विच्छिन्न रखे | वह केंद्र के परिसर मे ही रहे | इस अवधि में किसी से टेलीफ़ोने अथवा पत्र द्वारा भी संपर्क न करे | कोई अतिथि आ जाय तो वह व्यवस्थापकों से ही संपर्क करेगा |
सांप्रदायिक कर्मकांड एवं अन्य साधना-विधियो का सम्मिश्रण
शिविर की अवधि मे साधक किसी अन्य प्रकार की साधना-विधि व पूजा-पाठ, धूप-दीप, माला-जप, भजन-कीर्तन, व्रत-उपवास आदि कर्मकांडों के अभ्यास अनुष्टान न करें | विपश्यना के साथ किसी अन्य-साधना-विधि का सम्मिश्रण हानीप्रद हो सकता है |
योगासन व व्यायाम
विपश्यना साधना के साथ योगासन व अन्य शारीरिक व्यायाम का संयोग मान्य है, परन्तु केन्द्र में फिलहाल इनके लिए आवश्यक एकांत की सुविधाएं उपलब्ध नही है | इसलिए साधकों को चाहिए कि वे इनके स्थान पर अवकाश-काल मे निर्धारित स्थानों पर टहलने का ही व्यायाम करें |
मन्त्राभिषक्ति माला-कन्ठी, गंडा-ताबीज़ आदि
साधक उपरोक्त वस्तुएं अपने साथ न लाएं | यदि भूल से ले आए हों तो केंद्र पर प्रवेश करते समय इन्हे दस दिन के लिए व्यवस्थापक को सौंप दें |
कीमती आभूषण
केंद्र मे कीमती आभूषणो व वस्तुओ को सुरक्षित रखने की समुचित व्यवस्था नही है | अतः इन्हें अपने साथ न लाएं | परन्तु यदि कुछ ले ही आए हों तो अपने निवास मे न रखकर शिविरकाल तक के लिए व्यवस्थापक को सौंप दें |
नशीली वस्तुएं, धूम्रपान, जर्दा-तंबाकू व दवाएं
देश के क़ानून के अन्तर्गत भांग, गांजा, चरस आदि सभी प्रकार की नशीली वस्तुएं रखना अपराध है | केंद्र में इनका प्रवेश सर्वथा निषिद्ध है |
केंद्र की साधना-स्थली में धूम्रपान करने अथवा जर्दा-तंबाकू खाने की सख़्त मनाही है |
कुछ दवाएं विपश्यना साधना के प्रतिकूल होने के कारण नही ली जानी चाहिए | फिर भी रोगी साधक दवाएं अपने साथ अवश्य लाएं, परन्तु सेवन के बारे मे आचार्य से परामर्श करें |
पढ़ना-लिखना
साधक किसी भी विषय की पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएं व लेखन-सामग्री अपने साथ नही लाएं | शिविर के दौरान धार्मिक एवं विपश्यना संबंधी पुस्तकें पढ़ना भी वर्जित है | ध्यान रहे विपश्यना साधना पूर्णतया प्रयोगात्मक विधि है | लेखन-पठन से इसमे विघ्न ही होता है | अतः नोट्स भी नही लिखें |
टेप-रेकॉर्डर/ कैमरा
आचार्य की विशिष्ट अनुमति के बिना केन्द्र पर इनका प्रयोग सर्वथा वर्जित है |
आचार्य से मिलना
साधक चाहे तो अपनी समस्याओ के समाधान के लिए आचार्य से दोपहर 12 से 1 बजे के बीच अकेले मे मिल सकता है | परन्तु यह ध्यान रहे कि सभी प्रश्न विपश्यना-विधि को स्पष्ट समझने के लिए जिज्ञासुभाव से ही किए जाएं, वाद-विवाद व तर्क-वितर्क के लिए नही | समय-सीमा का ध्यान रखें ताकि अन्य साधक भी अपनी शंका-समाधान कर सकें | रात्रि 9 से 9:30 बजे तक साधना कक्ष में भी सार्वजनीन प्रश्नोत्तर का अवसर उपलब्ध होगा |
भोजन
विभिन्न समुदायो के लोगों को अपनी रूचि का भोजन उपलब्ध कराने में अनेक व्यवहारिक कठिनाइयां हैं | इसलिए साधको से प्रार्थना है कि व्यवस्थापकों द्वारा जिस सादे, सात्विक, निरामिष भोजन की व्यवस्था की जाए उसी मे समाधान पायें | यदि किसी रोगी साधक को चिकित्सक द्वारा कोई विशेष पथ्य बतलाया गया हो तो आवेदन-पत्र मे एव शिविर में प्रवेश के समय इसकी सूचना व्यवस्थापक को अवश्य दें, जिससे यथासंभव आवश्यक व्यवस्था की जा सके |
भोजन-निवास-व्यय
विपश्यना जैसी अनमोल साधना की शिक्षा पूर्णतया निःशुल्क ही दी जाती है | शिविरों का खर्च इस साधना से लाभान्वित साधकों के क्रतज्ञताभरे एच्छिक दान से चलता है | जिन्हें इस विधि द्वारा सुख-शांति मिली है, वे इसी मंगल चेतना से दान देते हैं कि बहुजनों के हित-सुख के लिए धर्म-सेवा का यह कार्य चिरकाल तक चलता रहे और अनेकानेक लोगों को ऐसी ही सुख-शांति मिलती रहे | शिविर समापन के समय नये साधकों के मन मे इस प्रकार की मंगल भावना जागे तो वे भी अपनी श्रद्धा व शक्ति के अनुसार दान दे सकते हैं | नाम, यश अथवा बदले मे अपने लिए विशिष्ठ सुविधा पाने का उद्देश्य त्यागकर केवल लोक-कल्याण की चेतना से ही दान दें |
शिविर व्यवस्था का सारा खर्च तो साधको के एक्छिक दान पर आश्रित है ही; वैज्ञानिक अनुसंधान के निमित आवश्यक यांत्रिक उपकरणों की पूर्ति, ध्यान-गुफाओ एव अन्य आवश्यक भवनो का निर्माण भी श्रद्धा एव क्रतज्ञताबहुल साधकों के दान पर ही निर्भर करता है | केन्द्र के लिए आमदनी का कोई अन्य स्रोत नही है |