विपश्यना साधना विधि संबंधी प्रश्न एवं उत्तर
Side View of Dhamma Meditation Hall
शिविर की अवधि दस दिन की क्यों है?
वास्तव में दस दिन भी कम हैं। यह शिविर साधना की आवश्यक भूमिका एवं नींव डालता है। साधना में प्रगति करना जीवन भर का काम है। कई पिढियों का अनुभव है कि यदि साधना को दस दिन से कम में सिखाने जाए तो साधक विधि को अनुभूति के स्तर पर ठीक से ग्रहण नहीं कर पाता। परंपरा के अनुसार विपश्यना (Vipassana) को सात सप्ताह के शिविरों में सिखाया जाता था। बीसवीं सदी कि शुरुआत में इस परंपरा के आचार्यों ने जीवन की द्रुत गति को ध्यान में रखते हुए इस अवधि को कम करने के प्रयोग किए। उन्होंने पहले तीस दिन, फिर दो सप्ताह, फिर दस दिन एवं सात दिन के शिविर लगाए और देखा कि दस दिन से कम समय में मन को शांत कर शरीर एवं चित्त धारा का गहराई से अभ्यास करना संभव नहीं है।
दिन में मैं कितने घंटे ध्यान करूंगा?
दिन की शुरुआत सुबह चार बजे जगने की घंटी से होती है और साधना रात को नौ बजे तक चलती है। दिन में लगभग दस घंटे ध्यान करना होता है लेकिन बीच में पर्याप्त अवकाश एवं विश्राम के लिए समय दिया जाता है। प्रतिदिन शाम को आचार्य गोयंकाजी का वीडियो पर प्रवचन होता है जो साधकों को दिन भर के साधना अनुभव समझने में मदत करता है। यह समय सारिणी पिछले कई दशकों से लाखों लोगों के लिए उपयुक्त एवं लाभदायी सिद्ध हुई है।
शिविर में कौनसी भाषा का उपयोग होता है?
साधना की शिक्षा आचार्य गोयंकाजी के हिंदी एवं अंग्रेजी में रिकॉर्ड किए गए निर्देशों द्वारा दी जाती है। इनके अनुवाद विश्व की कई प्रमुख भाषाओं में उपलब्ध हैं। अगर शिविर संचालन करने वाले सहायक आचार्य प्रादेशिक भाषा को नहीं जानते तो अनुवादक का प्रबंध किया जाता है। सामान्यतया शिविरार्थी के लिए भाषा कोई बाधा नहीं होती।
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शिविर का शुल्क कितना है?
विपश्यना शिविर में हर साधक पर आनेवाला खर्च उसके लिए पुराने साधक का उपहार है, दान है। शिविर में रहने का, खाने-पीने का, शिक्षा का कोई शुल्क नहीं लिया जाता। विश्व भर में सभी विपश्यना शिविर स्वेच्छा से दिए गए दान पर चलते हैं। यदि शिविर की समाप्ति पर आपको लगता है कि साधना से आपको कुछ लाभ हुआ है तो आप भविष्य में आने वाले साधकों के लिए अपनी इच्छा एवं अपने सामर्थ्य के अनुसार दान दे सकते हैं।
शिविर संचालन के लिए सहायक आचार्यों को कितना पारिश्रमिक दिया जाता है?
सहायक आचार्यों को कोई वेतन, दान अथवा भौतिक लाभरूपी पारिश्रमिक नहीं दिया जाता। अतः उनकी जीविका का साधन अलग होना चाहिए। इस नियम के कारण कई सहायक आचार्य कम समय निकाल पाते है, लेकिन यह नियम साधक का शोषण एवं शिक्षा का व्यवसायीकरण होने से बचाता है। इस परंपरा के आचार्य केवल सेवा भाव से काम करते हैं। शिविर की समाप्ति पर साधकों को लाभ हुआ है, इस का समाधान ही उनका पारिश्रमिक होता है।
मैं पालथी मार कर नहीं बैठ सकता। क्या मैं फिर भी ध्यान कर सकता हूं?
निश्चित रूप से। जो साधक आयु के कारण अथवा कोई शारीरिक रोग के कारण पालथी मारकर नहीं बैठ सकते उनके लिए कुर्सियों का प्रबंध रहता है।
मुझे विशेष भोजन आवश्यक है। क्या मैं अपना खाना साथ ला सकता हूं?
अगर आपके डॉक्टर ने आपको किसी विशेष आहार की सलाह दी है तो हमें सूचित करें। हम देखेंगे कि क्या हम वह उपलब्ध करा सकते हैं। यदि भोजन अत्यंत विशेष है या ऐसा है जिससे कि साधना में बाधा आ सकती है तो आपको कुछ देर रुकने के लिए कहा जा सकता है, जब तक की आपके भोजन के निर्बंध कम हो। हम क्षमा चाहते हैं लेकिन यह नियम है कि साधकों को व्यवस्थापन द्वारा दिये गये भोजन में से ही अपना भोजन लेना होता है। वे अपना भोजन साथ नहीं ला सकते। अधिकतर साधक पाते हैं कि शिविर में भोजन के पर्याप्त विकल्प होते हैं एवं वे शुद्ध शाकाहारी भोजन का आनंद लेते हैं।
क्या गर्भवती महिलाएं शिविरों में आ सकती हैं? क्या उनके लिए कोई विशेष प्रबंध अथवा निर्देश होते हैं?
गर्भवती महिलाएं शिविर में भाग ले सकती है। कई गर्भवती महिलाएं तो उस समय इसलिए शिविर में आती हैं कि उस विशेष समय में मौन रहते हुए गंभीरता से साधना कर सकें। हम गर्भवती महिलाओं से निवेदन करते हैं कि वे शिविर में आने से पहले यह निश्चित कर ले कि गर्भ स्थिर है। उन्हें आवश्यकतानुसार पर्याप्त भोजन दिया जाता है एवं आराम से साधना करने के लिए कहा जाता है।
शिविर में मौन क्यों होता है?
शिविर के दौरान सभी साधक आर्य मौन यानी शरीर, वाणी एवं मन का मौन रखते हैं। वे अन्य साधकों से संपर्क नहीं करते। साधकों को अपनी जरुरतों के लिए व्यवस्थापन से एवं साधना संबंधी प्रश्नों के लिए सहायक आचार्य से बात करने की छूट होती है। पहले नौ दिन मौन का पालन करना होता है। दसवें दिन सामान्य जीवन प्रक्रिया में लौटने के लिए बात करना शुरु करते हैं। इस साधना में अभ्यास की निरंतरता ही सफलता की कुँजी है। मौन इस निरंतरता को बनाए रखने हेतु आवश्यक अंग है।
मैं कैसे जान पाऊंगा कि मुझमें साधना करने की योग्यता है?
एक शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति जो सचमुच साधना करना चाहता है एवं उसके लिए पर्याप्त प्रयत्न करता है उसके लिए आर्य मौन सहित विपश्यना साधना कठिन नहीं है। अगर आप निर्देशों को निष्ठा से एवं धैर्यपूर्वक पालन करते है तो अच्छे परिणाम आयेंगेही। यद्यपि दिनचर्या कठिन लगती है, न वह बहुत कठोर है न बहुत आरामप्रद। इसके अलावा अन्य साधकों की उपस्थिति, जो शांतिपूर्वक वातावरण में गंभीरता से ध्यान कर रहे हैं, साधक के प्रयत्नों को मददगार होती है।
किसे साधना में भाग नहीं लेना चाहिए?
यदि कोई शारीरिक रूप से इतना कमजोर है कि दिनचर्या का पालन नहीं कर सकता, तो उसे शिविर से पर्याप्त लाभ नहीं होगा। यही बात मानसिक रोगी या अत्यंत कठिन मानसिक तुफानों में से गुजर रहे व्यक्ति पर भी लागू है। सामान्यतया, बातचीत करके हम यह पता लगा सकते है कि क्या कोई व्यक्ति शिविर से उचित लाभ ले पायेगा या नहीं। कुछ साधकों को हम शिविर में बैठने के पूर्व डॉक्टरों से अनुमति लेनेके लिए भी कह सकते हैं।
क्या विपश्यना शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों का इलाज कर सकती है?
कई बीमारियां मानसिक तनावों के कारण होती है। अगर तनाव दूर किया जायं तो रोग भी दूर हो जायेगा या कम हो जायेगा। परंतु यदि रोग को दूर करने के उद्देश्य से विपश्यना की जाय तो लाभ नहीं होता। जो साधक ऐसा करते है वे अपना समय बरबाद करते है, क्यों कि वे गलत उद्देश्य रखते हैं। वे अपनी हानि भी कर सकते हैं। न तो वे साधना को ही ठीक से सीख पाते हैं, न ही बीमारी से छुटकारा पाने में सफल होते हैं।
क्या विपश्यना डिप्रेशन को दूर करती है?
विपश्यना का उद्देश्य बीमारी को ठीक करना नहीं है। जो कोई भी विपश्यना का ठीक अभ्यास करता है वह हर स्थिति में संतुलित एवं प्रसन्न रहना सीख जाता है। लेकिन किसी को गंभीर डिप्रेशन का रोग है तो वह साधना ठीक से नहीं कर पायेगा एवं उचित लाभ से वंचित रह जायेगा। ऐसे व्यक्ति को चाहिए कि वह डाक्टरी सलाह लें। विपश्यना के आचार्य अनुभवी साधक जरूर हैं लेकिन मनोचिकित्सक नहीं।
क्या विपश्यना किसीको मानसिक रूप से असंतुलित कर सकती है?
नहीं। विपश्यना जीवन के हर उतार-चढाव में सजग, समतावान यानी संतुलित रहना सिखाती है। लेकिन यदि कोई अपनी गंभीर मानसिक समस्याओं को छिपाता है, तो वह विधि को ठिक से समझ नहीं पायेगा एवं ठिक से साधना न कर पाने के कारण उचित लाभ नहीं प्राप्त कर पायेगा। इसलिए यह आवश्यक है कि आप हमें आपकी मानसिक समस्याओं के बारे में ठीक से जानकारी दें ताकि हम सही निर्णय ले पायेंगे कि क्या आप शिविर से पर्याप्त लाभ उठा पायेंगे या नहीं।
क्या विपश्यना सीखने के लिए बौद्ध बनना पडेगा?
विभिन्न संप्रदायों के लोग एवं वे भी जो किसी संप्रदाय में विश्वास नहीं रखते, सभीने विपश्यना को लाभदायक ही पाया है। विपश्यना जीवन जीने की कला है। यह भगवान बुद्ध की शिक्षा का सार है लेकिन यह कोई संप्रदाय नहीं है। वरन यह मानवी मूल्यों के संवर्धन का उपाय है जो अपने एवं औरों के लिए हितकारी है।
पूरे दस दिन तक शिविर में रहना क्यों आवश्यक है?
विपश्यना एक एक कदम सिखायी जाती है। शिविर के अंत तक हर रोज एक नया आयाम जोड़ा जाता है। यदि आप इसे बीच में छोड़ देते हैं तो पूरी शिक्षा नहीं ग्रहण करेंगे। आप इस साधना को लाभ देने का अवसर नहीं देंगे। गंभीरता से काम करने पर साधक एक प्रक्रिया शुरु करता है जो शिविर की समाप्ति में ही परिपूर्ण होती है। इस प्रक्रिया को बीच में ही रोक देना उचित नहीं।
क्या शिविर को बीच में छोड़ देना खतरनाक है?
शिविर को बीच में छोड कर आप अपने आपको साधना पूरी तरह सीखने का अवसर नहीं देते। इस कारण आप दैनिक जीवन में इसका उपयोग नहीं कर पायेंगे। आप इस प्रक्रिया को बीच में रोक देते है। बीच में शिविर छोडने से आप जो समय आप दे चूके है, वह व्यर्थ गँवा देते हैं।
दसवें दिन जब कि मौन खुल गया है एवं गंभीर साधना समाप्त हो गयी है, क्या तब मैं जा सकता हूं?
शिविर के बाद सामान्य जीवन में जाने के लिए दसवां दिन एक परिवर्तन (ट्रान्जीशन) दिवस है। साधक को उस दिन जाने की अनुमति नहीं दी जाती।